कुबेर मूवी रिव्यू

 कुबेर मूवी रिव्यू

Kuber Movie Review

 

पैन इंडिया सुपरस्टार धनुष, नागार्जुन और रश्मिका मंधाना की नई फिल्म "कुबेर" सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है। जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है – कुबेर यानी खजाना। फिल्म की कहानी बंगाल की खाड़ी में मिले कच्चे तेल की खोज से शुरू होती है। इस खजाने पर कब्जा जमाने के लिए बिजनेसमैन नीरज मित्रा (जिम) राजनीतिक गलियारों में करोड़ों रुपये लुटाने को तैयार है। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए वह पूर्व CBI अधिकारी दीपक शर्मा (नागार्जुन) को अपने साथ मिलाता है, जिन्हें एक पुराने केस के चलते जेल की सजा काटनी पड़ी थी। सिस्टम के आगे मजबूर होकर दीपक भी उसका साथ देने को राजी हो जाते हैं।

इसी मोड़ पर फिल्म में धनुष की एंट्री होती है, जो एक भिखारी 'देवा' की भूमिका निभा रहे हैं। धनुष ने इस किरदार में जान डाल दी है। उन्हें देखकर लगता है जैसे यह भूमिका खास तौर पर उनके लिए ही लिखी गई हो। कहानी आगे बढ़ती है जब दीपक शर्मा इस घोटाले को अंजाम देने के लिए भिखारियों का इस्तेमाल करने लगते हैं। काम पूरा होने के बाद कुछ भिखारियों की हत्या कर दी जाती है। देवा (धनुष) को इस साजिश की भनक लग जाती है और वह किसी तरह जान बचाकर भाग निकलते हैं। इसी दौरान उनकी मुलाकात होती है रश्मिका मंधाना से, जो कहानी में एक नया मोड़ लाती हैं।


फिल्म की कहानी कई परतों में आगे बढ़ती है — एक ओर अमीरी और सत्ता के लालच में डूबे लोग हैं, तो दूसरी ओर एक आम सा भिखारी है, जो अपनी बिखरी हुई जिंदगी को फिर से संवारने की कोशिश कर रहा है। फिल्म एक बेहद संवेदनशील संदेश देती है। भिखारियों के प्रति सहानुभूति का भाव दिखाया गया है और उनकी ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं को बखूबी उजागर किया गया है। फिल्म का एक डायलॉग — "ज़िंदगी में हम सब कहीं न कहीं भीख ही मांग रहे हैं" — दर्शकों को भीतर तक झकझोर देता है।

फिल्म का निर्देशन और लेखन शेखर कम्मुला ने किया है। उनकी लेखनी और विज़न दोनों ही बेहद प्रभावशाली हैं। स्क्रीनप्ले मजबूत है और हर किरदार को पर्याप्त गहराई दी गई है। हां, कुछ जगहों पर फिल्म की रफ्तार धीमी पड़ती है, लेकिन मजबूत कहानी, दमदार अभिनय और गहन सामाजिक संदेश इसे एक यादगार अनुभव बना देते हैं।

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